tag:blogger.com,1999:blog-8630740466450345758.post5351675685577752156..comments2023-05-13T03:00:36.314-07:00Comments on Dil ki baat: अंजू शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13237713802967242414noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-8630740466450345758.post-2574078027246755892012-05-04T09:54:36.217-07:002012-05-04T09:54:36.217-07:00अंजू इस विस्तृत परिचय के लिए आपका आभार .......:)
स...अंजू इस विस्तृत परिचय के लिए आपका आभार .......:)<br />सुदेश जी नमस्कार ......//विलासी नेता....श्रापित आम इंसान// रचना के सन्दर्भ में आपके विचार पढ़ कर अच्छा लगा ......सत्ता और आम आदमी के बीच के छत्तीस के आंकड़े को शब्दों में ढालना चाहा है मैंने .......घोटाले .गबन और सिर्फ सरकारी खातों का तल्लीनता से रख -रखाव ही आज सरकार के कार्य नज़र आते हैं .जबकि दूसरी और आम आदमी खासकर किसान की ख़ुदकुशी ही कल अखबारों की सुर्खिया बनती हैं .....दर्द तो उठता है जब रीढ़ की हड्डी पर प्रहार होता है ..........शुक्रिया आपने इस रचना के बारे में सोचा और प्रयास को सराहा ......Poonam Matiahttps://www.blogger.com/profile/02537790258861413412noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8630740466450345758.post-54887837776238300562012-04-29T09:20:40.115-07:002012-04-29T09:20:40.115-07:00पुतले पे उतरता गुस्सा----हमारे समय की सत्ता क्रूरत...पुतले पे उतरता गुस्सा----हमारे समय की सत्ता क्रूरता की रक्षा करता है......इसी लिए शासक ने ये विरोध का लोकतान्त्रिक झुनझुना जनता को थमा कर अपने को सुरक्षित कर लिया है.......गुस्से को खो कर आदमी खाली हो जाता है और फिर चलता है सत्ता का क्रूरतम खेल.........मिथलेश जी पुरे जन्तर-मन्त्र की उपयोगिता को ही एक षड्यंत्र के रूप में प्रकट किया है........जन्तर-मन्त्र या बोट-कलब ना होते तो असली क्रांति इंतज़ार ना करतीsudeshhttps://www.blogger.com/profile/04373077720519370397noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8630740466450345758.post-33295957893642125452012-04-29T09:07:46.578-07:002012-04-29T09:07:46.578-07:00सुधांशू की कवितायें क्या हैं....कमाल हैं ! टेलेंट ...सुधांशू की कवितायें क्या हैं....कमाल हैं ! टेलेंट ने तो रही सही कसर भी पूरी कर दी.<br />आस्मां,जिद,दोस्ती,कौना,बगुला भगत ....एक से एक !sudeshhttps://www.blogger.com/profile/04373077720519370397noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8630740466450345758.post-2825205688193790432012-04-29T08:59:39.136-07:002012-04-29T08:59:39.136-07:00पद्मनी का इस सभ्य समाज में कितना बड़ा स्थान है यही...पद्मनी का इस सभ्य समाज में कितना बड़ा स्थान है यही मनोज जी की इस कविता में दिखाई देता है....विज्ञापन समाचार-पत्रों के इसी और इशारा करते हैं....सुशील-सर्व-गुण संपन्न चाहिए.....(मतलब जो जन्म दे सके पुत्रों को)......विज्ञान का भयानक प्रयोग स्त्री पे ही आजमाया जाता हैंsudeshhttps://www.blogger.com/profile/04373077720519370397noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8630740466450345758.post-46708430094281638212012-04-29T08:48:21.662-07:002012-04-29T08:48:21.662-07:00जनता का आदमी....कई बार सुनी है पर पढ़ी आज है.....बह...जनता का आदमी....कई बार सुनी है पर पढ़ी आज है.....बहुत ही कमाल का व्यग्य है......जहां तक में समझ पाया हूँ ये महान-बुद्धिजीवियों के तौर-तरीको पे कटाक्ष है------एक बात मनोज जी से कहना चाहता हूँ जो आपने कविता के बीच में डोट डालें हैं इनको भर दो ......कविता और भी सुंदर हो जायेगी.sudeshhttps://www.blogger.com/profile/04373077720519370397noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8630740466450345758.post-60132102139884916752012-04-29T08:38:11.731-07:002012-04-29T08:38:11.731-07:00विलासी नेता....श्रापित आम इंसान....उस आदमी की बदतर...विलासी नेता....श्रापित आम इंसान....उस आदमी की बदतर हालातों को स्पष्ट करता है जिसके बारे में सदियों से सत्ता चिंतित है........सत्ता की चिंता जितनी तर्क-संगत बनती जाती है आम आदमी की स्थिति भी और भी भयावह रूप धरती जाती है.......पूनम माटिया जी उस आदमी के साथ खड़ी दिखाई देती हैं जो समाज की रीड है.......पर दुर्भाग्य है यही रीड तोड़ी जाती है ......sudeshhttps://www.blogger.com/profile/04373077720519370397noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8630740466450345758.post-28374250850508829392012-04-29T08:25:40.285-07:002012-04-29T08:25:40.285-07:00नोरिन शर्मा की प्रतिबंधित क्षेत्र प्रश्नों के जन्म...नोरिन शर्मा की प्रतिबंधित क्षेत्र प्रश्नों के जन्म पर ही म्रत्यु की और इशारा करती है.....बच्चों के प्रश्न अब चाँद-तारे-आस्मां की और की बजाय .....अपने बारे में जिज्ञासा को दिखाते हैं......जहां तक मुझको लगता है बच्चे अब बड़े हो रहे हैं .....उनके सवाल वाजीब हैं..<br />ऐसे सवालों से आदमी कन्नी काट जाता है ....और औरत को इनसे दो-चार होना पड़ता है.....<br />बहुत ही सटीक प्रश्न को स्पस्ट किया है नोरिन शर्मा ने अपनी इस कविता से ....sudeshhttps://www.blogger.com/profile/04373077720519370397noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8630740466450345758.post-54863157352271301102012-04-29T08:09:25.637-07:002012-04-29T08:09:25.637-07:00अंजू जी की आँखे जहां आदमी के पशु से भी खतरनाक स्वर...अंजू जी की आँखे जहां आदमी के पशु से भी खतरनाक स्वरुप का बखान करती है वही दुष्यंत की अंगूठी पहिये लगी जिन्दगी के सच से रूबरू कराती है..हद तो इतनी है छोटे-छोटे बालक भी पहियों से बाढ़ दिए गए हैं....बच्चे का टिफिन......इसी और इंगित करता है.....और प्राण-प्रिय का व्यवहार सारे आदमियों के व्यव्हार को प्रकट करता है.....जीवन का आनंद रस.....सामाजिक जटिलताओं के आगे सूखने की और अग्रसर दिखाई पड़ता है.....सबसे बड़ी बात फिर भी स्त्री उस आनंद रस को बचाने को तत्पर दिखती है.....बहुत ही सारगर्भित कविता है .......सुंदरतम श्रेणी की कविता हैंsudeshhttps://www.blogger.com/profile/04373077720519370397noreply@blogger.com